Dear student in this article we will read BAG BEVAE 181 Year 2024 ( ASSIGNMENT – January 2024 ) B.A - Assignment Solution
खंड क
1."सतत विकास एक आदर्श लक्ष्य है जिसकी ओर सभी मानव समाजो को आगे बढ़ने की आवश्यकता है" उपयुक्त तर्कों के साथ इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर -
सतत विकास की अवधारणा
सतत विकास का अर्थ यह है की हमें संसाधनों का प्रयोग इस प्रकार करना है की हमारी आनी वाली पीढ़ियों को भी यह संसाधन आसानी से उपलब्ध हो सकें क्योंकि संसाधन पृथ्वी पर सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं और अगर इनका सदुपयोग नहीं हुआ तो यह भावी पीढ़ियों के लिए ख़त्म हो सकते हैं
सतत् विकास की संकल्पना को 'आवर कॉमन फ्यूचर नामक शीर्षक की रिपोर्ट में औपचारिक रूप से परिभाषित किया गया था यह रिपोर्ट वर्ल्ड कमीशन ऑन एन्वायरमेन्ट एंड डवलपमेंट" (WCED) द्वारा गठित दल के विचार-विमर्श का परिणाम थी।इसकी अध्यक्षता तत्कालीन नोर्वेजिअन प्रधानमंत्री ग्रो हार्लेम ब्रुन्टलैन्ड द्वारा ली गई थी।
ब्रुन्टलैन्ड आयोग के अनुसार - सतत विकास को ऐसे विकास के रूप में परिभाषित किया था 'जो वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकता को भावी पीढ़ियों द्वारा अपनी निजी आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता में कोई समझौता किए बगैर पूरा करता है"
सतत विकास एक आदर्श के रूप में -
सतत विकास एक आदर्श है जिसे आज के किसी भी समाज द्वारा इससे मिलते-जुलते किसी रूप में नहीं प्राप्त किया जा सका है। फिर भी जैसा कि न्याय, समानता और स्वतंत्रता के साथ है, सतत विकास को एक आदर्श के रूप में बढ़ावा देना चाहिए।एक लक्ष्य जिसकी प्राप्ति के लिए सभी मानव समाजों को प्रयत्नशील रहना चाहिए।
उदाहरण के लिए, ऐसी नीतियां और कार्य जो शिशुमृत्युदर को कम कर दें, परिवार नियोजन की उपलब्धता को बढ़ा दे, वायु की गुणवत्ता बेहतर बना दें, अधिक प्रचुर मात्रा में साफ़ जल प्रदान करें, प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्रों का बचाव और सुरक्षा करें, मृदा अपरदन को कम करें और पर्यावरण में हानिकारक रसायनों की उपलब्धता को कम करें, जो सभी समाज को सही दिशा में एक सतत् भविष्य की ओर ले जाएं।
"सतत विकास एक आदर्श लक्ष्य है जिसकी ओर सभी मानव समाजो को आगे बढ़ने की आवश्यकता है" इस कथन की पुष्टि के लिए निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए जा सकते है -
- सतत विकास से पूरे विश्व से गरीबी के सभी रूपों की समाप्ति होगी।
- भूख की समाप्ति, खाद्य सुरक्षा और स्वस्थ जीवन को बढ़ावा मिलेगा।
- सतत विकास से सभी आयु के लोगों में स्वास्थ्य सुरक्षा और स्वस्थ जीवन को बढ़ावा मिलेगा।
- सतत विकास से समावेशी और न्यायसंगत गुणवत्ता युक्त शिक्षा सुनिश्चित करने के साथ ही सभी को सीखने का अवसर मिलेगा।
- सतत विकास से लैगिक समानता प्राप्त करने के साथ ही महिलाओं और लड़कियों को सशक्त करना।
- सतत विकास से सभी के लिए स्वच्छता और पानी के सतत् प्रबंधन की उपलब्धता सुनिश्चित होगी।
- सतत विकास से सस्ती, विश्वसनीय, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा तक पहुंच सुनिश्चित होगी ।
- सतत विकास से सभी के लिए निरंतर समावेशी और सतत आर्थिक विकास, पूर्ण और उत्पादक रोजगार और बेहतर कार्य को बढ़ावा मिलेगा ।
- सतत विकास से लचीले बुनियादी ढांचे, समावेशी और सतत औद्योगिकरण को बढ़ाया जा सकेगा।
- सतत विकास से देशों के बीच और भीतर समानता को कम किया जा सकेगा।
- सतत विकास से सुरक्षित, लचीले और टिकाऊ शहर और मानव बस्तियों का निर्माण किया जा सकेगा।
- सतत विकास से स्थायी खपत और उत्पादन पैटर्न को सुनिश्चित किया जा सकेगा।
- सतत विकास से जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों से निपटने के लिए तत्काल कार्यवाई की जा सकेगी।
- सतत विकास के जरिए महासागरों, समुद्र और समुद्री संसाधनों का संरक्षण और उपयोग किया जा सकेगा।
- सतत विकास के जरिए सतत् उपयोग को बढ़ावा देने वाले स्थलीय पारिस्थिकीय प्रणालियों, सुरक्षित जंगलों, भूमि क्षरण और जैव विविधता के बढ़ते नुकसान को रोकने का प्रयास किया जा सकेगा।
अत: इस प्रकार हम कह सकते है की "सतत विकास एक आदर्श लक्ष्य है जिसकी ओर सभी मानव समाजो को आगे बढ़ने की आवश्यकता है" तथा उपरोक्त कथन इसकी पुष्टि करते है ।
2. समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पृथ्वी पर सबसे बड़ा और सबसे स्थिर पारिस्थितिकी तंत्र है और इसका अत्यधिक पारिस्थितिक महत्व है। अपने उत्तर को उपयुक्त उदाहरणों द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
पृथ्वी पर समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र सबसे बड़ा और सबसे पारिस्थितिकी तंत्र स्थायी है और इसका बहुत पारिस्थितिकीय महत्व है।समुद्र का पानी नमकीन है और लवणता का 3.5 प्रतिशत है. जिसमें सोडियम क्लोराइड (NaCl) का प्रतिशत 27 है, शेष कैल्शियम, पोटैशियम और मैग्नीशियम लवण है। प्रकाश कार्बनिक उत्पादन और समुद्री जीवन के वितरण में एक महत्वपूर्ण सीमाकारी कारक है। तापमान भी लगभग स्थिर रहता है यह 32° ध्रुवीय समुद्रों में 2°C से. लेकर उणकटिबंधों में 27 C या अधिक तक होता है।
पारिस्थितिकी महत्व
महासागर के जीवजात
समुद्र में जीवन विशेषतया प्रचुर नहीं है, हालांकि जीवों की विविधता बहुत ज्यादा है। प्राणियों का लगभग प्रत्येक प्रमुख वर्ग और शैवाल का प्रत्येक प्रमुख वर्ग महासागर में कहीं न कहीं पाए जाते हैं। संवहनी पौधे और कीट इसके अपवाद हैं। जीवन रूपों में गहराई के हिसाब से मिलने वाले अंतर के आधार पर समुद्री पारितंत्रों के विस्तार को वेलांचली, नेरिटांचली, वेलापवर्ती और नितलस्थ मंडलों में बांटा गया है।
1) वेलांचली (Littoral Zone) मंडल के जीवजात
यह मंडल समुद्री पारितंत्रों का तटीय क्षेत्र है। सामान्य भाषा इस सुप्रा बेलांचली मंडल को समुद्र तट कहते हैं। इसे तरंगों तथा ज्वारभाटों की प्रचण्डता, जल-स्तर के उतार-चढ़ाव और तापमान, प्रकाश, लवणता तथा आर्द्रता यानी नमी की परिवर्तनशीलता झेलनी पड़ती है।
यहां पाए जाने वाले सामान्यत प्राणी घोंघे, क्लेम (सीपी), बार्नेकल, क्रस्टेशियाई, एनेलिड्स, समुद्री ऐनीमोन और समुद्र अर्चिन हैं।
2) नेरिटांचली (Neritic) महासागरीय मंडल के जीवजात
इस सापेक्षिक रूप से उथले सागरीय मंडल में प्रकाश काफी गहराई तक वेधन करता है और यहां पोपकों की सांद्रता ज्यादा है। इन दो कारणों से इस क्षेत्र में जातियां अपेक्षाकृत अधिक होती हैं और उत्पादकता उच्च हैं।
मछली की सभी व्यापारिक जातियां जैसे व्हेल, सील, समुद्री ऊदबिलाव, समुद्री सांप और बड़े स्क्विड़ भी शामिल है। मछलियां अनेकों हैं जिनमें शार्क की अनेक जातियां तथा समुद्री ट्राउट एवं सालमन शामिल हैं।
इसमें प्राणियों की ढेरों किस्में है जिसमें सीपी (क्लैम), शिम्प, घोंघे, महाचिंगट (लॉब्स्टर), केकड़े (क्रैब), समुद्री कर्कटी (कुकुम्बर), तारामीन (स्टारफिश), भंगुरतारा (ब्रिटल स्टार), ऐनीमोन, स्पंज, ब्रायोजोआ, एनिलिड और फोरमिनिफेरा आदि अधिक गहरे पानी की तुलना में अधिक विविधता दर्शाते हैं।
3 ) वेलापवर्ती (Pelagic) मंडल के जीवजात
कुल समुद्र पृष्ठ का 90 प्रतिशत वेलापवर्ती क्षेत्र है। इस क्षेत्र में जातियां कम हैं और जीवों की संख्या भी कम है। सबसे प्रचुरता में पाए जाने वाले वेलाप्रवर्ती पादपप्लवक केवल डायनोफ्लैजिलेट और डायटम हैं, जो मुख्य प्रकाशसंश्लेषी भरक हैं, दूसरे मांसभोजी हैं।
समुद्री कुकम्बर और समुद्री अर्चिन अपरद तथा जीवाणु खाते हुए अधस्तल पर रेंगते हैं तथा मांसाहारी भंगुरतारा और केकड़ों का आहार बनते हैं।
4 ) नितलस्थ मंडल के जीवजात
यह समुद्र का तल बनाता है। यहाँ के जीव विषमपोषी होते हैं। दृढ़मूल जन्तु समुद्री लिली, समुद्री कोरल और स्पंज आदि है। धोंधे और सीपियां कीचड़ में धंसी रहती हैं जबकि तारामीन, समुद्री कर्कटी और समुद्री अर्चिन इसकी सतह पर घूमते रहते हैं।
3."बहुतायत के बीच गरीबी, प्रकृति प्रचुर है लेकिन आदिवासी गरीब हैं' इस कथन को वन संसाधनों के संबंध में समझाएं।
उत्तर-
गरीबी बीच में बहुतायत है, प्रकृति भरपूर है फिर भी आदिवासी गरीब है। इस कथन को वन संसाधनो के सम्बन्ध में इस प्रकार समझाया जा सकता है यह कथन हमारे देश में अधिकांश जनजातिय जनसख्या की स्थिति का वर्णन करता है।
1. वन संसाधन
देश के प्रमुख जनजातीय क्षेत्रों के पास संपदा से सम्पन्न वन आच्छादन, खनिज असर क्षेत्र और पर्याप्त संख्या में मुख्य नदियों के जल विभाजन है।
2. आदिवासियों के लिए वन संसाधनों का महत्व
वन भोजन, दवा और अन्य जरूरी उत्पाद जनजातीय लोगों को उपलब्ध कराते हैं, और ये एक महत्त्वपूर्ण भूमिका वन में रहने वाले लोगों के जीवन और आर्थिक में निभाते हैं।
3. आदिवासियों पर विकास का प्रभाव
विकास की क्रियाओं के वजह जैसे बांध का निर्माण, खनन, खनिज आधारित उद्योगों की स्थापना इत्यादि ने जनजातीय लोगों को उनकी भूमि से हस्तांतरित कर दिया। यह हस्तांतरण उन लोगों के रोटी-रोटी को वंचित कर दिया जो कि जनजातीय लोग मुख्यतः प्राकृतिक संसाधन आधारित अनौपचारिक अर्थव्यवस्था पर निर्भर थे।
4. आदिवासियों की अनौपचारिक अर्थव्यवस्था
प्राकृक्तिक संसाधन आधारित अनौपचारिक अर्थव्यवस्था मुख्यत्तः कृषि, जो स्थिर और झूम दोनों थे, दूसरी ओर गैर लकड़ी वन उत्पाद जैसे औषधीय जड़ी बूटी, खाद्य फूल पत्तियां, और फल पर निर्भर थे। वे छोटी लकड़ी और जलाने योग्य लकड़ी भी वन से इकट्ठा करते थे।
5. अनौपचारिक से औपचारिक अर्थव्यवस्था में हस्तांतरण
विकास की सीमा ने उनके कृषि और वन भूमि को प्रभावित किया जोकि प्राथामिक रूप से उनके रोजी-रोटी थे। विकास की प्रक्रिया ने उन्हें अनौपचारिक से औपचारिक अर्थव्यवस्था में धकेल दिया और बिना किसी तैयारी के यह उनके लिए नया था।
6. आदिवासियों की कृषि भूमि तथा वन पर निर्भरता
वे कृषि भूमि और वन पर पूर्णतः निर्भर रहते थे जो कि वे विभिन्न परियोजना की वजह से खो चुके हैं। जब उन्हें इनकी भरपाई मुद्रा के रूप में प्राप्त हुई अधिकांश समुदाय अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में रह रहे इस चीज से अपरिचित थे।
4."भारत की ऊर्जा आवश्यकताएँ केवल ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्रोतों को अपनाने में निहित हो सकती हैं। विस्तार से व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
ऊर्जा के ऐसे स्रोत जो प्रकृति से उत्पन्न होते हैं उन्हें गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्रोत या ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत माना जाता है। इन स्रोतों में सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, साथ ही ज्वारीय ऊर्जा शामिल हैं।ऊर्जा के इन स्रोतों का उपयोग पूरी तरह से लंबे समय तक किया जाता है। तथा यह प्रदुषण मुक्त होते है। "भारत की ऊर्जा आवश्यकताएँ केवल ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्रोतों को अपनाने में निहित हो सकती हैं। यह कथन बिलकुल सत्य है, तथा इसकी व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है -
1. विभिन्न प्रकार के नवीकरणीय संसाधन
भारत में बहुत मात्रा में नवीकरणीय ऊर्जा संसाधन हैं, जिनमें सौर, पवन, जलविद्युत, बायोमास और भूतापीय ऊर्जा शामिल हैं। ये संसाधन जीवाश्म ईंधन के लिए एक नवीन और टिकाऊ विकल्प प्रदान करते हैं, जो सीमित हैं और वायु प्रदूषण, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन में योगदान करते हैं। भारत में मुख्य रूप से सौर ऊर्जा ज्यादा मात्रा में है, पूरे देश में उच्च सौर विकिरण स्तर है। पवन ऊर्जा एक और महत्वपूर्ण नवीकरणीय संसाधन है, मुख्य रूप से पश्चिमी तट पर और तमिलनाडु और गुजरात जैसे राज्यों में। इन नवीकरणीय संसाधनों का उपयोग करके, भारत अपने ऊर्जा मिश्रण में परिवर्तन ला सकता है, और अपनी जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम कर सकता है और ऊर्जा सुरक्षा के क्षेत्र में एक विश्वशनीय काम कर सकता है।
2. ऊर्जा की हर क्षेत्र तक पहुँच
भारत के ग्रामीण और दूरस्थ इलाकों में जीवन स्तर में सुधार, उत्पादकता बढ़ाने और गरीबी को कम करने के लिए उर्जा के गैर पारम्परिक स्रोत तक पहुँच आवश्यक है। लेकिन , भारत में लाखों लोगों को अभी भी विश्वसनीय बिजली तक पहुँच की कमी है, मुख्य रूप से गाव जैसे इलाके और दूरस्थ इलाकों में। उर्जा के गैर पारम्परिक स्रोत या नवीकरणीय ऊर्जा समाधानों में निवेश करके, भारत ऊर्जा पहुँच की खाई को समाप्त सकता है, सामाजिक समानता को बढ़ावा दे सकता है और किनारे पर पड़े तबको को सशक्त बना सकता है।
3. जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करना
दुनिया को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्रोतों को अपनाना जरूरी है।
भारत दुनिया के सबसे बड़े ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जकों में से एक है, जिसका मुख्य कारण बिजली बनाना और औद्योगिक प्रक्रियाओं के लिए कोयले पर इसकी निर्भरता है। ऊर्जा की ओर संक्रमण भारत के कार्बन उत्सर्जन को काफी हद तक कम कर सकता है और वैश्विक तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे सीमित करने के वैश्विक प्रयासों में अपना योगदान दे सकता है। नवीकरणीय ऊर्जा के बुनियादी ढांचे में निवेश करके और कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों को धीरे धीरे हटाकर, भारत कम कार्बन अर्थव्यवस्था में वैश्विक रूप से विशेष भूमिका निभा सकता है।
4. ऊर्जा के लिए दुसरे देशो पर कम निर्भरता
दुसरे देशो से जीवाश्म ईंधन, विशेष रूप से तेल और प्राकृतिक गैस पर भारत की भारी निर्भरता, ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण जोखिम पैदा करती है। विश्व में तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव, भू-राजनीतिक तनाव और आपूर्ति में परेशानी भारत की ऊर्जा सुरक्षा और भुगतान संतुलन के लिए गंभीर परिणाम हो सकते हैं। भारत अपने ऊर्जा स्रोतों में विभिन्त्ता लाकर और आयातित जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करके, भारत ऊर्जा स्वतंत्रता को बढ़ा सकता है, उर्जा से संबंधित परेशानी और अपनी अर्थव्यवस्था को बाहरी झटकों से बचा सकता है। सौर और पवन ऊर्जा,जैव उर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत स्वाभाविक रूप से घरेलू और प्रचुर मात्रा में हैं, जो जीवाश्म ईंधन के लिए एक उचित और लाभदायक विकल्प प्रदान करते हैं।
5. निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 150 शब्दों में दें।
क) कुल और बांस ड्रिप सिंचाई पद्धतियों के महत्व को स्पष्ट करें।
उत्तर - कुल और बांस ड्रिप सिंचाई पद्धतियों का महत्व
कुल सिंचाई
1. पानी की बचत: यह सबसे महत्वपूर्ण लाभ है। कुल सिंचाई में, पानी सीधे पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है, जिससे भाप द्वारा वाष्पीकरण और मिट्टी से रिसाव कम होता है। यह जल उपयोग दक्षता को बढ़ाता है और पानी की बर्बादी को कम करता है, जो कि सूखे वाले क्षेत्रों में महत्वपूर्ण है।
2. उच्च उपज: कुल सिंचाई पद्धति से मिट्टी में नमी का स्तर लगातार बना रहता है, जिससे पौधों को स्वस्थ रहने और अधिक उत्पादन करने में मदद मिलती है।
3. कम खरपतवार: कुल सिंचाई में, खरपतवारों को बढ़ने के लिए कम पानी मिलता है, जिससे खरपतवार नियंत्रण में आसानी होती है।
4. कम मिट्टी का क्षरण: कुल सिंचाई मिट्टी के क्षरण को कम करने में मदद करता है क्योंकि पानी के बहाव से मिट्टी का क्षरण नहीं होता है।
बांस ड्रिप सिंचाई
1. सस्ती और टिकाऊ : बांस ड्रिप सिंचाई प्रणाली सस्ती, बनाने में आसान और टिकाऊ होती हैं। यह उन्हें छोटे किसानों और ग्रामीण समुदायों के लिए किफायती विकल्प बनाता है।
2. स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री : बांस ड्रिप सिंचाई प्रणाली को बांस और अन्य स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री से बनाया जा सकता है, जो परिवहन लागत और पर्यावरणीय प्रभाव को कम करता है।
3. बहुमुखी : बांस ड्रिप सिंचाई प्रणाली विभिन्न प्रकार की फसलों और ढलानों पर इस्तेमाल की जा सकती है।
4. पर्यावरण अनुकूल : बांस एक नवीकरणीय संसाधन है और बांस ड्रिप सिंचाई प्रणाली रसायनों के उपयोग को कम करती है, जिससे यह पर्यावरण के लिए अनुकूल विकल्प बन जाता है।
अतः कुल मिलाकर, कुल और बांस ड्रिप सिंचाई दोनों ही पानी बचाने, फसल उत्पादन बढ़ाने और किसानों की आजीविका में सुधार करने के लिए प्रभावी तरीके हैं।
ख) "मिट्टी जो भूमि की सबसे ऊपरी परत बनाती है, सभी संसाधनों में सबसे कीमती है। इस कथन को समझाइये।
उत्तर-
मृदा, जो भूमि की सबसे ऊपर की परत बनाती है, सभी संसाधनों में सबसे कीमती है, क्योंकि ये समूचे जीवनतंत्र को सहारा देती है, वनस्पतियों के रूप में भोजन और चारा प्रदान करती है और जीवन के लिए अनिवार्य जल का भंडारण करती है। इसमें बालू, सिल्ट / गाद और मृत्तिका के साथ वायु और आर्द्रता मिश्रित होती है।
इसमें समृद्ध कार्बनिक और खनिज पोषक पाए जाते हैं। मृदा का प्रकार एक स्थान से दूसरे स्थान में भिन्न होता है। जो मृदाएं कार्बनिक तत्वों से समृद्ध होती है, वो उर्वर होती है। उर्वरता मृदा की जल और ऑक्सीजन को धारण करने की क्षमता पर भी निर्भर करती है।
ग) जैव विविधता के अप्रत्यक्ष उपयोग मूल्य की व्याख्या करें।
उत्तर-
अप्रत्यक्ष मूल्य उन सेवाओं के लिए होता है जो खपत के मदों को आधार देती हैं।
1. गैर खपत मूल्य
यह प्रकृति की सेवाओं से अधिक संबंधित है, जो समाज कल्याण में योगदान के साथ पारिस्थितिक प्रक्रियाओं को भी बढ़ावा देती है, जिनके बिना हमारा ग्रह (पृथ्वी) रहने योग्य नहीं होगा।
2. सौंदर्य मूल्य
जैव विविधता के सौंदर्य पक्षों की प्रशंसा उन लोगों में झलकती है जो अपने घर के बगीचे का रखरखाव करते है जो लोग राष्ट्रीय पार्क, वनस्पति तथा जंतु उद्यान जलजीवशाला, और ऐसे स्थानों पर जाते हैं जहां वे प्राकृतिक दृश्यावली का अनुभव कर सकता है या विविध प्रजातियों को देख सकते है।
3. सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्य
मानव समाज की जैव विविधता का सांस्कृतिक मूल्य का आम तौर पर जीवन के रूपों के लिए आदर या जैव विविधता के घटकों के प्रतीक के रूप में वर्णन किया जाता है। कुछ देशों में बाघ, रार छिपकली, कछुए और गैर धार्मिक तथा आध्यात्मिक मान्यताओं के प्रतीक है। उदाहरण के लिए, हनुमान लंगूर (सेग्नोपिथेकरा एटेलस) जिसे भारत में पवित्र माना जाता है।
4. नैतिक मूल्य
जैव विविधता का नैतिक मूल्य स्वयं अपने लिए जैव विविधता के अतिरिक मूल्य पर प्रकाश डालता है और यह बड़ी संख्या में मानव समुदायों द्वारा खोजी गई प्रजातियों की विविध आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक उपयोगिता से स्वतंत्र है।
घ) "प्रजाति विविधता जैव विविधता का सबसे अधिक दिखाई देने वाला घटक है। वर्णन कीजिये।
उत्तर-
प्रजाति में विविधता का अर्थ है प्रजातियों के बीच अंतर (घरेलू और वन्य दोनों)।
यह जैव विविधता का सबसे अधिक दिखाई देना वाला घटक है क्योंकि यह शब्द "प्रजाति" पर लागू होता है, जिसका शाब्दिक अर्थ है बाहर की ओर या दिखाई देने वाला रूप। यही कारण है कि हम एक खास क्षेत्र या वैश्विक स्तर पर प्रजातियों की संख्या के संदर्भ में जैविक विविधता का वर्णन करते हैं।
पृथ्वी पर विद्यमान (अर्थात् वर्तमान में मौजूद) होने वाली प्रजातियों के विभिन्न अनुमान हैं, जो लगभग 5 से 100 मिलियन के बीच हैं, किंतु लगभग 12.5 मिलियन का आंकड़ा सर्वाधिक व्यापक रूप से स्वीकार्य है।
इनमें से लगभग 1.7 मिलियन प्रजातियों का अब तक वर्णन किया गया है। केवल संख्याओं के संदर्भ में ही हमारी धरती पर कीट और सूक्ष्म जीव सबसे बड़ी संख्या में पाए जाने वाले जीव रूप हैं
च) खाद्य श्रृंखला और खाद्य जाल के बीच अंतर बताएं।
उत्तर- खाद्य श्रृंखला और खाद्य जाल में अंतर :
खाद्य श्रृंखला
- यह जीवों के समूहों का एक रैखिक क्रम है जो एक दूसरे को भोजन के रूप में खाते हैं।
- इसमें ऊर्जा एक स्तर से दूसरे स्तर पर स्थानांतरित होती है।
- उदाहरण: घास -> खरगोश -> लोमड़ी -> शेर
- किसी भी खाद्य श्रृंखला में चार या पांच से अधिक स्तर नहीं होते हैं।
खाद्य जाल
- यह विभिन्न खाद्य श्रृंखलाओं का जाल होता है जो एक दूसरे को आपस में जोड़ता है।
- यह एक पारिस्थितिक तंत्र में विभिन्न प्रकार के भोजन संबंधों
को प्रदर्शित करता है।
- ऊर्जा विभिन्न दिशाओं
में प्रवाहित हो सकती है।
- यह अधिक जटिल और वास्तविक होता है।
खंड ख
6. उपयुक्त केस अध्ययनों के साथ पर्यावरण संरक्षण में लोगों की भागीदारी की आवश्यकता की व्याख्या करें।
उत्तर -
पर्यावरण संरक्षण का अर्थ पर्यावरण की रक्षा करने से है। यह एक सामूहिक प्रयास है, और इसमें सफलता हासिल करने के लिए सभी की भागीदारी बहुत जरूरी है। सरकारें और बड़े संगठन अहम भूमिका निभाते हैं, परंतु पर्यावरण संरक्षण हर नागरिक की जिम्मेदारी है।
पर्यावरण संरक्षण में लोगों की भागीदारी से सम्बंधित केस स्टडी उदाहरण :
1. अरावली बचाओ आंदोलन : यह राजस्थान का एक प्रसिद्ध ल आंदोलन है, जिसके तहत लोगों ने मिलकर एक साथ वृक्षारोपण किया और वनों की कटाई को रोकने का प्रयास किया ।
2. साततपुर, महाराष्ट्र : इस गांव में, रहने वाले निवासियों ने मिलकर तालाबों का निर्माण किया, जिससे जल संरक्षण और सूखे से मुकाबला करने में सहायता मिली।
3. हिमालय वनवासी योजना : इस योजना के तहत, वन विभाग ने स्थानिक लोगों को वन प्रबंधन में हिस्सेदार बनाया , जिससे वन्यजीवों और वनों की रक्षा करने में मदद मिली।
4. प्लास्टिक मुक्त भारत अभियान : इस राष्ट्रीय अभियान ने लोगों को प्लास्टिक के प्रयोग को कम करने और प्लास्टिक कचरे का सही तरीके से निपटान करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
लोगों की भागीदारी क्यों जरूरी है?
1. जागरूक करना : लोग जब पर्यावरणीय मुद्दों से रूबरू होते हैं, तो वे उनसे जुड़े खतरों को समझने लगते हैं और ज़िम्मेदारी से काम करन शुरू कर देते है।
2. स्थानीय प्रयास : स्थानीय समुदाय अपनी समस्याओं को अच्छे तरीके से समझते हैं और उनका समाधान भी निकाल सकते हैं।
3. समर्थन : लोग नीतिगत बदलावों और स्थायी समाधानों के लिए समर्थन जुटा सकते हैं।
4. जवाब मांगना : जब लोग भाग लेते हैं, तो वे सरकारों और संगठनों से जबाव मांग सकते हैं।
निष्कर्ष:
पर्यावरण संरक्षण में लोगों की भागीदारी बहुत महत्वपूर्ण है। यह जागरूकता, सक्रियता और सामूहिक प्रयासों से ही हम पर्यावरण को बचा सकते हैं। हम सभी को साथ मिलकर काम करना होगा, छोटे-छोटे परिवर्तन लाने होंगे, और तभी हम आने वाली भावी पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ और टिकाऊ ग्रह बना पाएंगे।
7.वैश्विक स्तर पर प्राकृतिक भंडारों के संबंध में आर्द्रभूमि की प्रासंगिकता स्पष्ट करें।
उत्तर -
आर्द्रभूमि पृथ्वी पर सबसे ज्यादा जैविक रूप से विविध और उत्पादक पारिस्थितिकी तंत्रों में से एक है, जो विभिन्न प्रकार के पौधों और जानवरों की प्रजातियों के लिए आवास प्रदान करती है।
वैश्विक स्तर पर प्राकृतिक भंडारों के संबंध में आर्द्रभूमि की प्रासंगिकता
1. जैव विविधता हॉटस्पॉट : अद्रभूमि जैव विविधता हॉटस्पॉट हैं, जो जलीय और अर्ध-जलीय वातावरण की प्रजातियों के लिए एक श्रृंखला का समर्थन करते हैं। प्रवासी पक्षियों और जलपक्षियों से लेकर मछलियों, उभयचरों, सरीसृपों और अकशेरुकी जीवों तक, आद्रभूमि अनगिनत प्रजातियों के लिए आवश्यक आवास प्रदान करते हैं। आद्रभूमि को घेरने वाले प्राकृतिक भंडार बरकरार पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करके, पारिस्थितिक संपर्क बनाए रखते हुए और खतरे में पड़ी और लुप्तप्राय प्रजातियों के लिए शरण प्रदान करके इस जैव विविधता की सुरक्षा करने में मदद करते हैं। वेटलैंड्स प्रवासी पक्षियों के लिए प्रजनन स्थल, भोजन क्षेत्र और रहने स्थल के रूप में काम करते हैं, जिससे वे वैश्विक स्तर पर जैव विविधता के संरक्षण के लिए जरूरी बन जाते हैं।
2. आवास संपर्क : आर्द्रभूमि आवास संपर्क और पारिस्थितिक गलियारों को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जिससे वन्यजीवों का आना जाना और आबादी के बीच आनुवंशिक आदान-प्रदान में आसानी होती है। आर्द्रभूमि को शामिल करने वाले प्राकृतिक भंडार इन संपर्क नेटवर्क का बचाव करने में मदद करते हैं, जिससे प्रजातियों का प्रवास करने, फैलने और परिवर्तित पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुकूल होने में मदद मिलती है। आर्द्रभूमि वन्यजीवों के लिए कदम रखने वाले पत्थर, शरणस्थल के रूप में काम करती है, जो आवास विखंडन और जलवायु परिवर्तन के सामने आनुवंशिक विभिन्त्ता , जनसंख्या लचीलापन और पारिस्थितिकी तंत्र लचीलापन को बढ़ावा देती है।
3. जलवायु परिवर्तन अनुकूलन : आर्द्रभूमि अत्यधिक लचीले पारिस्थितिकी तंत्र हैं जो जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और शमन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं, मिट्टी और वनस्पति में कार्बनिक कार्बन की विशाल मात्रा को संग्रहीत करते हैं, और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में मदद करते है, आर्द्रभूमि को शामिल करने वाले प्राकृतिक भंडार बरकरार पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करके, खराब हो चुके आवासों को बहाल करके और पारिस्थितिकी तंत्र-आधारित अनुकूलन उपायों को बढ़ावा देकर जलवायु परिवर्तन लचीलापन में योगदान करते हैं। प्रकृति भंडारों के अंदर आर्द्रभूमि को संरक्षित करके, देश जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने और अधिक लचीले और टिकाऊ समाजों का निर्माण करने की अपनी क्षमता को बढ़ा सकते है
4. पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ : आर्द्रभूमियाँ पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की एक लम्बी श्रृंखला प्रदान करती हैं जो मानव कल्याण और सतत विकास के लिए आवश्यक हैं। वे जल प्रवाह को नियंत्रित करते हैं,जल को एकीकृत और फ़िल्टर करते हैं, और बाढ़ और सूखे को कम करते हैं, जिससे प्राकृतिक बाढ़ नियंत्रण, जल शोधन और भूजल पुनर्भरण सेवाएँ प्रदान की जाती हैं। आर्द्रभूमि वाले प्राकृतिक भंडार इन पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की सुरक्षा में मदद करते हैं, स्थानीय समुदायों और डाउनस्ट्रीम आबादी के लिए स्वच्छ जल, खाद्य सुरक्षा और जलवायु लचीलापन सुनिश्चित करते हैं। आर्द्रभूमियाँ कार्बन को भी अलग करती हैं, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करती हैं, और मनोरंजक और सांस्कृतिक लाभ प्रदान करती हैं, जिससे समाज के लिए प्रकृति भंडारों का समग्र मूल्य बढ़ता है।
5. सांस्कृतिक और सामाजिक- आर्थिक महत्व : आद्रभूमि का स्वदेशी लोगों, स्थानीय समुदायों और पूरे समाज के लिए विशेष सांस्कृतिक और सामाजिक-आर्थिक महत्व है। वे पारंपरिक आजीविका का समर्थन करते हैं, भोजन, पानी और आवास और शिल्प के लिए सामग्री प्रदान करते हैं, और पवित्र स्थलों और सांस्कृतिक विरासत क्षेत्रों के रूप में काम करते हैं। आद्र्भूमि वाले प्राकृतिक भंडार इन सांस्कृतिक मूल्यों और पारंपरिक ज्ञान की सुरक्षा करने, स्वदेशी अधिकारों, सांस्कृतिक विभिनता और सामुदायिक लचीलेपन को बढ़ावा देने में सहायता करते हैं।
6. वैश्विक बचाव प्राथमिकताएँ : आर्द्रभूमि को उनके पारिस्थितिक महत्व, मानवी गतिविधियों के प्रति संवेदनशीलता और जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के समर्थन में जरूरी भूमिका के कारण वैश्विक संरक्षण प्राथमिकताओं के रूप में मान्यता प्राप्त है। आर्द्रभूमि वाले प्राकृतिक भंडार प्रतिनिधि आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्रों की रक्षा, प्रमुख प्रजातियों का संरक्षण और परिदृश्य पैमाने पर पारिस्थितिक प्रक्रियाओं को बनाए रखकर वैश्विक संरक्षण प्रयासों में योगदान करते हैं। आर्द्रभूमि पर रामसर कन्वेंशन जैसे अंतर्राष्ट्रीय समझौते आर्द्रभूमि संरक्षण के महत्व को उजागर करते हैं और आर्द्रभूमि जैव विविधता की सुरक्षा के लिए संरक्षित क्षेत्रों के नामकरण को बढ़ावा देते हैं।
निष्कर्ष
आर्द्रभूमि महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र हैं जो वैश्विक जैव विभिनता बचाने के प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आर्द्रभूमि को शामिल करने वाले प्राकृतिक भंडार जैव विविधता की रक्षा करने, पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को संरक्षित करने और विश्व स्तर पर सतत विकास को बढ़ावा देने में मदद करते हैं।
8.पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के उद्देश्यों और पर्यावरण संरक्षण में इसकी भूमिका की व्याख्या करें।
उत्तर -
भोपाल त्रासदी के परिपेक्ष्य में भारत सरकार ने 1986 में पर्यावरण (सुरक्षा) अधिनियम बनाया। यह अधिनियम एक "छत्र" (umbrella) विधेयक है जिसका निर्माण अधिनियमों जैसे कि जल अधिनियम तथा वायु अधिनियम के अंतर्गत स्थापित विभिन्न केंद्रीय तथा राज्य प्राधिकरणों के क्रियाकलापों का समन्वय करने के लिए किया है।
इस अधिनियम में मुख्य बल "पर्यावरण" पर दिया गया है जिसके अंतर्गत जल, वायु तथा भूमि के साथ-साथ वे सारे परस्परसंबंध भी आते हैं जो जल, वायु और भूमि एवं मानवों तथा अन्य जीवों, पौधों सूक्ष्मजीवों तथा सम्पत्ति के बीच होते पाए जाते हैं।
"पर्यावरण प्रदूषण" का अर्थ है किसी प्रदूषण का होना, तथा प्रदूषण की परिभाषा है कोई भी ठोस, तरल अथवा गैसीय पदार्थ जो ऐसे सांद्रता में मौजूद है जो पर्यावरण के लिए क्षतिकारक हो या जिसमें क्षतिकारक प्रवृत्ति हो। 'जोखिमभरे पदार्थों में कोई भी ऐसा पदार्थ या निर्मिति आती है जो मनुष्यों को, अन्य जीव-जंतुओं को, पौधों को, सूक्ष्मजीवों, सम्पत्ति अथवा पर्यावरण को हानि पहुंचा सकती हो।
पर्यावरण सरंक्षण में भूमिका
- अधिनियम के खंड 3(1) में केंद्र को अधिकार दिया गया है कि वह ऐसा कोई भी कदम उठा सकता है जो उसकी समझ के अनुसार पर्यावरण की गुणवत्ता को सुरक्षित रखने एवं उसकी अधिक सुधरी अवस्था के लिए जरूरी हो और पर्यावरण प्रदूषण को रोकने उसका नियंत्रण करने तथा उसके सुधार करने के लिए आवश्यक हो। केंद्रीय सरकार को विशेषकर यह अधिकार होगा वह पर्यावरण की गुणवत्ता के लिए नए राष्ट्रीय मानक बनाए और साथ ही निस्स्रावों तथा बहिप्रवाही विसर्जनों के नियंत्रण के लिए भी मानक बनाए, औद्योगिक स्थानों पर नियमन करे, जोखिम भरे पदार्थों के प्रबंधन के लिए विधियां बताए, दुर्घटनाओं को रोकने के लिए सुरक्षा उपाय स्थापित करे और पर्यावरण प्रदूषण संबंधी तमाम सूचना इकट्ठी करे, और उससे सबको सूचित करे।
- इस अधिनियम के द्वारा केंद्रीय सरकार को पर्याप्त अधिकार मिल गए हैं जिनमें ये सब शामिल हैं: राज्य द्वारा कार्यवाही का समन्वय, राष्ट्रव्यापी कार्यक्रमों का नियोजन एवं उनका क्रियान्वित करना, पर्यावरण गुणवत्ता मानकों का बनाना और उनमें भी वे जो पर्यावरण प्रदूषकों के निस्स्रावों अथवा विसर्जनों को नियंत्रित करने से जुड़े हैं. तथा उद्योगों के स्थान पर प्रतिबंध लगान आदि।
- मिले अधिकार वास्तव में बहुत व्यापक हैं। इसमें बहुत कुछ आता है जैसे जोखिन भरे पदार्थों का उठाना-बिठाना, पर्यावरण दुर्घटनाओं को रोकना, प्रदूषणकारी इकाइयों की जांच-पड़ताल, अनुसंधान, प्रयोगशालाओं की स्थापना, सूचना प्रसारण आदि।
- पर्यावरण (सुरक्षा) अधिनियम पहला पर्यावरण विधेय था जिसने केंद्रीय सरकार को अधिकार दिया कि वह सीधे आदेश दे सकती है. और इसमें ऐसे भी आदेश हो सकते है कि किसी भी उद्योग, उसके परिचालन तथा प्रक्रिया को बंद कराया जा सकता है. उस पर प्रतिबंध लगाया जा सकता अथवा उसका नियमन कराया जा सकता है या उसकी बिजली, पानी अथवा अन्य किसी भी सेवा को रुकवाया जा सकता अथवा उसका नियमन कराया जा सकता है। केंद्रीय सरकार को यह भी अधिकार मिला कि वह अधिनियम के पालन को सुनिश्चित कराए और उसमें ये सब शामिल हैं –
- निरीक्षण करने, उपकरण के परीक्षण अथवा अन्य कोई भी और काम और उसे अधिकार होगा कि वह विश्लेषण हेतु वायु, जल, मिट्टी अथवा किसी भी जगह से किसी भी पदार्थ के नमूने ले सके।
- अधिनियम में स्पष्टतः इस का निषेध किया गया है कि पर्यावरण प्रदूषकों को निर्दिष्ट नियमनकारी मानकों से अधिक मात्रा में बाहर छोड़े। इसमें इस बात का भी खास निषेध किया गया है कि नियमनकारी प्रविधियों एवं मानकों के अतिरिक्त जोखिम पदार्थों को कतई उठाया-बिठाया न जाए।
- अधिनियम में जुर्माना या सजा और दोनों ही प्रकार के दंडों का प्रावधान है। अधिनियम में प्रावधान है कि अधिकारिक सरकारी अफसरों के अलावा कोई भी व्यक्ति इस अधिनियम के तहत न्यायालय में शिकायत दर्ज करा सकता है।
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9. निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 150 शब्दों में दें।
क) पर्यावरण मानव स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करता है? इसे उपयुक्त उदाहरणों सहित विस्तार से समझाइये।
उत्तर-
पर्यावरण वह परिवेश है जिसमें हम रहते हैं। इसमें हमारे आस-पास की सभी चीजें शामिल हैं उदहारण के लिए सूर्य का प्रकाश, हवा, पानी, वर्षा, मिट्टी, पहाड़ आदि।
मानव स्वास्थ्य पर पर्यावरण का प्रभाव:
- पर्यावरण का संबंध हमारे आस-पास की सभी सजीव और निर्जीव चीजों से है। पर्यावरण का मानव स्वास्थ्य पर बहुत प्रभाव पड़ता है। हम प्रतिदिन पर्यावरण के साथ अंतःक्रिया करते हैं।
- विभिन्न पर्यावरणीय खतरों से अपने जीवन की रक्षा के लिए अपने पर्यावरण को स्वस्थ रखना बहुत आवश्यक है। पर्यावरणीय खतरे भौतिक, रासायनिक और जैविक खतरे हैं।
- भौतिक खतरों के उदाहरण में शामिल हैं वायु में उपस्थित कण, आर्द्रता, उपकरण डिजाइन, विकिरण आदि।
- जैविक खतरों के उदाहरण मे शामिल हैं वायरस, सूक्ष्मजीवी एजेंट, कीड़े, कृंतक, जानवर और पौधे आदि।
- रासायनिक खतरों के उदाहरण हैं कीटनाशक, कीटनाशक, शाकनाशी, सीसा, अम्ल, क्लोरीन और अन्य कास्टिक पदार्थ।
- हम जो दैनिक भोजन खाते हैं, सांस लेने वाली हवा और पीने के पानी में थोड़ी मात्रा में रसायन और हानिकारक पदार्थ होते हैं।
- इन पर्यावरणीय खतरों के प्रभावों में श्वसन तंत्र विकार, अस्थमा कैंसर,, एलर्जी और अन्य बीमारियाँ शामिल हैं।इस वातावरण में अनेक संक्रामक रोग रोगाणुओं द्वारा फैलते हैं।
ख) अनुचित अपशिष्ट निपटान से जुड़ी समस्याओं और मनुष्यों पर इसके प्रभाव की व्याख्या करें।
अपशिष्ट का अनुपयुक्त निस्तारण मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।अपशिष्ट निस्तारण के सामान्य तरीके जैसे अस्वास्थ्यकर खुले खत्ते/डंप, लैन्डफिलिंग, जलाशयों में विसर्जन अथवा खुले गर्तों में जलाने में संकटदायी अपशिष्टों के संबंध में रूपांतरण की आवश्यकता है।अनुपयुक्त अपशिष्ट निस्तारण का प्रमुख संकट मिट्टी और भूजल का संदूषण है। ये व्यापक रूप से संकटदायी पदार्थों युक्त अपशिष्ट का लैन्डफिलों अथवा भूमि पर ढेर लगाने से उत्पन्न होता है। में सरल तरीके से उस क्रियाविधि को प्रदर्शित किया गया है जिसके द्वारा संकटदायी पदार्थ लैन्डफिल में निस्तारित किए जाने के बाद मानव परिवेश में प्रवेश कर सकते हैं।
मनुष्यों पर प्रभाव
- पीने द्वारा प्रत्यक्ष अंर्तग्रहण।
- ऐसे संदूषकों को सांस के साथ ग्रहण करना जो गर्म जल से वाष्पीकृत होते हैं
- नहाने और घुलाई के काल में त्वचा द्वारा अवशोषण होना
- प्रदूषित भूजल के लिए उद्द्मासित पादपों अथवा जंतुओं से प्राप्त वस्तुओं के उपभोग द्वारा अंर्तग्रहण होना
- संदूषित मृदा के हस्ताचरण के काल में त्वचा द्वारा अवशोषण होना ।
ग) अम्लीय वर्षा को प्रमुख वैश्विक मुद्दों में से एक माना जाता है। अम्लीय वर्षा एवं उसके प्रभावों को समझाइये।
उत्तर -
अम्ल वर्षा को समझने के लिए पहले यह जानना आवश्यक है कि अम्ल का क्या अर्थ होता है। अम्लो और क्षारकों की आरेनियस परिभाषा के अनुसार, अम्ल वे पदार्थ होते हैं जो जलीय विलयनों में हाइड्रोजन आयन (H') प्रदान करते हैं।
अप्रदूषित पर्यावरण में भी वर्षा कुछ अम्लीय होती है और उसका pH मान लगभग 5.7 होला है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वर्षा के जल में वायुमंडल में उपस्थित कार्बनडाइऑक्साइड घुलकर कार्बोनिक अम्ल बनाती है
किसी भी प्रकार का वर्षण जैसे वर्षा हिमया कुहासा अम्ल निक्षेपण कहलाता है यदि कार्बोनिक अम्ल उसका pH मान 5.7 से कम हो।
अम्ल वर्षा या अम्ल हिमके रूप में आर्द्र निक्षेपण में नाइट्रिक अम्ल और सल्फ्यूरिक अम्ल उपस्थित होते हैं जो कि क्रमषः नाइट्रोजन के ऑक्साइडों और सल्फर के ऑक्साइडों की जल के साथ अभिक्रिया द्वारा बनते हैं।
अम्ल वर्षा के प्रभाव अम्ल वर्षा वाले जल का pH मान लगभग 4 होता है। ऐसे अम्लीय जल के अनेक हानिकारक प्रभाव है।
1. फसलों और पौधों पर प्रभाव - अम्ल वर्षा के फसलों और जंगलों पर विनाषकारी प्रभाव होते हैं। अम्ल वर्षा मृदा में उपस्थित महत्वपूर्ण खनिजों और पोषक तत्वों को विलेय कर सकती है। अम्ल वर्षा, मृदा जीवाणुओं और कवकों, जो पोषक तत्वों के चक्रण और नाइट्रोजन स्थिरीकरण में महत्वपूर्ण भमिका निभाते हैं, को भी प्रभावित कर सकती है। अतः मृदा की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है और पौधों की वृद्धि प्रभावित होती है।
2. जलीय निकायों और जलीय जीवों पर प्रभाव - जलीय तंत्रों जैसे झीलों, नदियों और तालाबों पर भी अम्ल वर्षा के हानिकारक प्रभाव होते हैं। उनमें लम्बे समय तक अम्ल के एकत्रित होने से उनका pH कम हो जाता है जिससे उनमें उपस्थित पौधे और जीव प्रभावित होते हैं। अनेक जलीय पौधों और विभिन्न प्रकार की मछलियों की ऐसी परिस्थितियों के लिए संवेदना स्तर अलग-अलग होता है. अतः ये इन परिस्थितियों में जीवित नहीं रह सकते।
3. मनुष्यों के स्वास्थय पर प्रभाव- अम्ल वर्षा के लिए उत्तरदायी गैसें और अम्ल वर्षा में उपस्थित अम्ल मनुष्यों के स्वास्थय को भी प्रभावित कर सकते हैं। विषेषकर उनके फेफड़ों को और श्वसन तंत्र को। वायु से शुष्क निक्षेपण, मनुष्यों में हृदय और फेफड़ों संबंधी समस्याओं जैसेः दमा और श्वसनीषोथ (bronchitis) का कारण होते हैं।
4. पदार्थों पर प्रभाव- अम्ल वर्षा पुलों, इमारतों, प्रतिमाओं और स्मारकों को भी नुकत्तान पहुंचा सकती है। इससे घातुओं और पेंट का संक्षारण (corrosion) होता है अनेक ऐतिहासिक स्मारकों पर अब अम्ल वर्षा द्वारा होने वाले प्रभावों पर ध्यान दिया जा रहा है। भारतवर्ष में ऐसा एक स्मारक आगरा में स्थित ताजमहल है। ताजमहल का रंग पहले से कुछ धूमिल हो चुका है। संगमरमर और चूना पत्थर से बनी इमारतें अम्ल वर्षा द्वारा प्रभावित होती है।
घ) उन विभिन्न मापदंडों की व्याख्या करें जो खपत के रूप में पानी की गुणवत्ता का आकलन कर सकते हैं।
उत्तर-
जल की गुणवत्ता का मापन विभिन्न मापदंडों के माध्यम से किया जा सकता है।
पहला मापदंड है रसायनिक संघटक, जिसमें जल में उपस्थित रसायनिक पदार्थों का मापन किया जाता है। ये रसायनिक संघटक सम्मिलित अनिवार्य तत्व, धातुओं, और विषाक्त पदार्थों की मात्रा को दर्शाते हैं।
दूसरा मापदंड है pH स्तर, जो जल की अम्लता या कटुता का मापन करता है। अवसादी या अम्लीय जल विकारों के कारण pH स्तर में बदलाव होता है। ये मापदंड विभिन्न तरीकों से जल की गुणवत्ता का मापन करने में सहायता करते हैं और सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं।
तीसरा मापदंड है रंग, जिसमें जल की स्वच्छता का मापन किया जाता है। साफ जल का रंग सादा होता है, जबकि जल में उपस्थित हानिकारक पदार्थों के कारण रंग में बदलाव हो सकता है।
चौथा मापदंड है गंध, जिसमें जल की खुशबू का मापन किया जाता है। स्वच्छ जल की सुगंध स्वास्थ्यप्रद होती है, जबकि जल में उपस्थित जीवाणु, कीटाणु, या अन्य पदार्थों के कारण गंध हो सकती है।
10.निम्नलिखित शब्दों को लगभग 60 शब्दों में समझाइएः
क) पर्यावरणीय न्याय
उत्तर- पर्यावरणीय न्याय का अभिप्राय उन स्थितियों से है जिसमें ऐसे अधिकार को मुक्त रूप से व्यवहार में लाया जा सकता हो, जिससे व्यक्तिगत् और समूह की पहचानें, आवश्यकताएं और प्रतिष्ठाएं संरक्षित रहें, पूरी हो और उनका इस तरीके से सम्मान हो जो आत्मबोध तथा व्यक्तिगत और सामुदायिक सशक्तीकरण प्रदान करें। यह शब्द पर्यावरणीय 'अन्याय' को पूर्व और वर्तमान के मसलों के रूप में मानती है और उन्हें संबोधित करने के लिए आवश्यक सामाजिक राजनैतिक उद्देश्यों को व्यक्त करता है। पर्यावरणीय न्याय को सभी पर्यावरणीय कानूनों और नियमों के लिए विधि के अंतर्गत समान न्याय और समान संरक्षण के लक्ष्य के रूप में परिभाषित किया गया है जिसमें नस्ल, जातीयता और सामाजिक आर्थिक स्तर के आधार पर कोई भेदभाव नहीं है।
ख) केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी)
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) का गठन जल (प्रदूषण रोक एवं नियंत्रण) अधिनियम 1974 के प्रावधान के अंतर्गत सितम्बर 1974 को हुआ था। जल (प्रदूषण रोक एवं नियंत्रण) अधिनियम 1974 तथा वायु (प्रदूषण रोक एवं नियंत्रण) में बताए गए अनुसार CPCB के मुख्य कार्य इस प्रकार हैं:
1. जल प्रदूषण की रोक, नियंत्रण तथा निवारण के द्वारा राज्यों के क्षेत्रों में जलधाराओं एवं कुओं की सफाई को बढ़ाना
2. देश में वायु प्रदूषण को रोकने, नियंत्रण करने एवं प्रशमन करके वायु की गुणवत्ता को बेहतर बनाना
ग) धूम कोहरा
यह वायु प्रदूषण का एक रूप है। ‘स्मोग’ का मतलब धुएं और कोहरे का मिला-जुला रूप से है। किसी क्षेत्र मंक धूम कोहरा वहां वृहद मात्रा में कोयले के दहन का परिणाम है और यह धुएं और सल्फर डाइऑक्साइड के मिश्रण द्वारा उत्पन्न होता है।
घ) हरित गृह गैसें
कार्बन डाइऑक्साइड, मेथेन, ओज़ोन, क्लोरोप्लुरोकार्बन तथा जल वाष्पों के कारण ही ग्रीन हाऊस प्रभाव उत्पन्न होता है और इसलिए इन गैसों को पौध घर गैसें या ग्रीन हाऊस गैसें कहते हैं।
कुछ उष्मा इन गैसों द्वारा रोक ली जाती है जिससे वायुर्मण्डल गर्ग हो जाता है। यही वह कारण है जिससे पृथ्वी का औसत तापमान -18°C से बढ़कर 15°C हो जाता है और यहाँ पृथ्वी पर पाए जाने वाले जीवन के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। यह स्थिति ग्रीन हाऊस (green house) कहलाती है ।